कविता : हे नारी तुम्हे जगना होगा || सूरज सिंह राजपूत
कविता : हे नारी तुम्हे जगना होगा
हे नारी तुम्हे जगना होगा
हे शक्ति तुम्हे जगना होगा ॥
तुम पुजा , तुम बंदना
तुम्हीं शक्ति , संवेदना
तुम माया , तुम माटी हो
ममतामई मां की छाती हो ॥
हे माया , माटी, बंदना
पुजा, शक्ति, सम्बेदना
तुम्हे स्वयं, स्वयं मे जगना होगा
हे शक्ति तुम्हे जगना होगा ॥
रणचंडी सा हुंकार भरो
निस दुष्टों का संहार करो
अब न, डरकर जीना होगा
हर रक्तबीज को पीना होगा ॥
हे नारी तुम्हे जगना होगा
हे शक्ति तुम्हे जगना होगा ॥
हो दुर्योधन या युधिष्ठिर
तुम्हें भेद नहीं करना होगा
दोनो से हीं लड़ना होगा
एक जीता था एक हारा था
दोनों ने मिलकर नारी के
गरिमा को ललकारा था !!
हे नारी तुम्हे जगना होगा
एक जीता था एक हारा था ॥
चाहे रावण या राम मिले
कुछ पृष्ठहीन संग्राम मिले।
हो मौन नही सहना होगा
सब शस्त्र सहित कहना होगा।
हे नारी तुम्हे जगना होगा
हे शक्ति तुम्हे जगना होगा ॥
तुम नील गगन की गर्जना
तुम देवो की आराधना
अब खुद को,
स्वयं परखना होगा ॥
हे नारी तुम्हे जगना होगा
हे शक्ति तुम्हे जगना होगा ॥
- सूरज सिंह राजूत
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