शीर्षक : बिकने से पहले !
कविता : बिकने से पहले !
मेरे प्रिय पाठक,
मेरा विश्वास करो
हमेशा से,
मैं, लिखना चाहता हूं
भूख, दुख और दुराचार ... ,
किन्तु,
मैं भी मनुष्य हूं !
ओह, मेरा ये मनुष्य होना !
प्रलोभन वस
मैं जब भी लिखूं
तिरस्कार को सत्कार
तो तुम मुझे याद दिलाना मेरी कलम बिक रही है ।
मेरे प्रिय पाठक,
तुम्हें जब भी दिखे
मेरी कविताओं में,
महलों के गीत
सत्य पर असत्य का जीत
ज्येष्ठ माह में पौष माह का शीत
तो तुम मुझे याद दिलाना मेरी कलम बिक रही है ।
मेरे प्रिय पाठक,
मैं मनुष्य हूं,
संभव है,
बिक भी जाऊं !
किंतु तुम,
तुम तो पाठक हो,
सच्चे पाठक !
तुम - तुम ,
निष्पक्ष पाठक बने रहना,
और मुझे,
मुझे याद दिलाना,
मैं बिक रहा हूं ,मेरे बिकने से पहले !
शायद,
मैं न बिकूं, बिकने से पहले !
बचा सकूं कलम बिकने से , बिकने से पहले !
तुम तो पाठक हो,
सच्चे पाठक !
बचालेना सब कुछ बिकने से पहले !
तब, शायद कुछ भी न बिकने से पहले !
मेरा विश्वास करो
हमेशा से,
मैं, लिखना चाहता हूं
भूख, दुख और दुराचार ... ,
किन्तु,
मैं भी मनुष्य हूं !
ओह, मेरा ये मनुष्य होना !
प्रलोभन वस
मैं जब भी लिखूं
तिरस्कार को सत्कार
तो तुम मुझे याद दिलाना मेरी कलम बिक रही है ।
मेरे प्रिय पाठक,
तुम्हें जब भी दिखे
मेरी कविताओं में,
महलों के गीत
सत्य पर असत्य का जीत
ज्येष्ठ माह में पौष माह का शीत
तो तुम मुझे याद दिलाना मेरी कलम बिक रही है ।
मेरे प्रिय पाठक,
मैं मनुष्य हूं,
संभव है,
बिक भी जाऊं !
किंतु तुम,
तुम तो पाठक हो,
सच्चे पाठक !
तुम - तुम ,
निष्पक्ष पाठक बने रहना,
और मुझे,
मुझे याद दिलाना,
मैं बिक रहा हूं ,मेरे बिकने से पहले !
शायद,
मैं न बिकूं, बिकने से पहले !
बचा सकूं कलम बिकने से , बिकने से पहले !
तुम तो पाठक हो,
सच्चे पाठक !
बचालेना सब कुछ बिकने से पहले !
तब, शायद कुछ भी न बिकने से पहले !
- सूरज सिंह राजपूत
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