कविता : भूख भाग - 4 ( किंतु भूख से ) || सूरज सिंह राजपूत

कविता : भूख भाग - 4 ( किंतु भूख से ) 

विकास भी है,
आवास भी है,
अनंत आकाश भी है।

किन्तु मेरा क्या है ?
विकास किसी और का,
आवास किसी और का,
फिर, अनंत आकाश ?

सुख भी है,
दुख भी है,
भूख इन सब पर भारी
फिर, अमिट प्यास ?

ये रोग, ये महामारी,
भूखे उदर की,
अपनी हीं लाचारी !
क्या, रोटी के व्यापारी ?

सूची,
रोग से मरने वालों की
किंतु भूख से ?
भूख वाली, सदियों से ?

सूची मैं बनाऊंगा,
गर कफ़न मिला भूख से मरने वालों को
मैं कफन बेच, 
लाश पर भूख लिखवाऊंगा ।

- सूरज सिंह राजपूत

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