कविता : भूख भाग - 1 || सूरज सिंह राजपूत


कविता  : भूख
 
भाग - 1

मुझे बेशक गुनाहगार लिखना 
साथ लिखना मेरे गुनाह, 
हक की रोटी छीनना । 
मैंने मांगा था, 
किंतु, 
मिला तो बस, 
अपमान, 
संदेश, 
उपदेश, 
उपहास, 
और बहुत कुछ । 
ज़िद भूख की थी, 
वह मरती मेरे मरने के बाद । 

इन, 
अपमानो, 
संदेशों, 
उपदेशो, 
उपहासो, 
से पेट न भरा, 
गुनाह न करता 
तो मर जाता मैं, 
मेरे भूख से पहले । 

मुझे बेशक गुनहगार लिखना 
लिखना, 
मैं गुनहगार था, 
या बना दिया गया । 

हो सके तो, 
लिखना, 
उस कलम की, 
मक्कारी, 
असंवेदना, 
चाटुकारिता, 
जिसकी 
नजर पड़ी थी, 
मुझपर मेरे गुनाहगार 
बनने से पहले 
लेकिन, 
उसने लिखा मुझे, 
गुनाहगार बनने के बाद । 

- सूरज सिंह राजपूत 

Comments