मुझे बेशक गुनाहगार लिखना
साथ लिखना मेरे गुनाह,
हक की रोटी छीनना ।
मैंने मांगा था,
किंतु,
मिला तो बस,
अपमान,
संदेश,
उपदेश,
उपहास,
और बहुत कुछ ।
ज़िद भूख की थी,
वह मरती मेरे मरने के बाद ।
इन,
अपमानो,
संदेशों,
उपदेशो,
उपहासो,
से पेट न भरा,
गुनाह न करता
तो मर जाता मैं,
मेरे भूख से पहले ।
मुझे बेशक गुनहगार लिखना
लिखना,
मैं गुनहगार था,
या बना दिया गया ।
हो सके तो,
लिखना,
उस कलम की,
मक्कारी,
असंवेदना,
चाटुकारिता,
जिसकी
नजर पड़ी थी,
मुझपर मेरे गुनाहगार
बनने से पहले
लेकिन,
उसने लिखा मुझे,
गुनाहगार बनने के बाद ।
- सूरज सिंह राजपूत
कविता : भूख भाग - 1 || सूरज सिंह राजपूत
" राष्ट्र चेतना पत्रिका "
यह पत्रिका किसी व्यक्ति या किसी राजनीतिक दल के विचारों से प्रेरित नहीं बल्कि यह विचारों में विविधताओं के बीच राष्ट्र चेतना के लिये एक सरल व सुगम मार्ग तलाशती है ।
इस पत्रिका को प्रकाशित करने का मुल उद्देश्य साहित्य जगत की उभरती प्रतिभाओं को एक मंच प्रदान करना है । उनकी सृजनशीलता को प्रोत्साहित करना है जो भविष्य मे अपनी लेखनी के माध्यम से राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा कर सकें ।
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भारतीय संख्या प्रणाली
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