लोगों ने बस एक जवाब दिया, यह पागल है ।

लोगों ने बस एक जवाब दिया, यह पागल है ।

यह पागल है, यह भिखारन है, यह गर्भवती है और यह इसके साथ तीसरी दफा है सामान्य शब्दों से बने असमान्य प्रश्न मुझे अब तक कुरेद रहे हैं ? इसका पागल होना, इसका भिखरन होना भी मैं समझ सकता हूं । परंतु इन वजहों से इसका गर्भवती होना मेरे लिए आज भी एक अनसुलझी पहली है ।

चलिए पहले मैं पूरी घटना से आपका परिचय करवा दूं । समय 6:05 बस मैं चाय की आखरी चुस्की ले रहा था कि होटल के खिड़की के बाहर खड़ी, मेरी नजर उस औरत पर पड़ी बस प्रश्नों का बवंडर सा मन में उठा । मैं तुरंत ही वहां से उठा होटल वाले को पैसे दिया और बाहर निकल पड़ा ।

मैं उस औरत के आसपास गया सामने की दुकान से चिंगम खरीदा , मैंने उसे गौर से देखा, मानसिक रूप से असंतुलित कुछ गंदे कपड़े पहन रखी थी बाल मानो जटा हो गए हो परंतु उसका गर्भवती होना जिसका जवाब मेरे पास न था, न है और शायद प्रयास करने के बाद भी न होगा । अंततोगत्वा मैं अपनी दुविधा दूर करने के लिए वही के दुकानदार से पूछने लगा आखिर यह कैसे ?

मुझे उम्मीद थी कि जबाब मुझे सांत्वना दे पाएगी परंतु जबाब ने मुझे आज तक दुविधा में डाल रखा वहां के दुकानदारों ने कहा की यह तीसरी दफा है जब वह गर्भवती हुई है । मैंने पूछा आखिर कैसे ?
लोगों ने बस एक जवाब दिया यह पागल है ? मै उनके इशारे को समझा . . .

परंतु किसी भी महीला का पागल होना उसके गर्भवती होने का कारण नही हो सकता, जब भी उसके के विषय में सोचता हूं मैं शून्य रह जाता हूं ।
मुझे वही पंक्तियां याद आती है जो मैंने उससे पूछी थी उसने उत्तर के रूप में दिया - मुझे भूख लगी ।
मेरे सभी तीन प्रश्नों के लिए उसके पास मात्र एक ही उत्तर था ।
उत्तर - मुझे भूख लगी है, भूख लगी है ।

एक महिला जो गर्भवती है, उसे भूख लगी है वह भूखी है , भूख का चरम इस बात से भी पता चलता है कि उसने सारे प्रश्नों का उत्तर दिया मुझे भूख लगी है । शायद यह पीड़ा हम पुरुष वर्ग के समझ से परे है गर्भवती होने के उपरांत भूख को मारना यह कोई गर्भवती महिला ही समझ सकती है ।

परंतु एक वक्त का भूख मिटा देना मेरे लिए न तो मेरे प्रश्नों का जवाब था न ही उसके समस्याओं का हल । सफर में बैठे बैठे हैं मैं सोचता रहा , विचलित होता रहा सोच न जाने क्यों मस्तिष्क से दिल तक पहुंच गई ।

सबके लिए जिम्मेवार कौन ?
क्या यहां सच में समानता का अधिकार है ?

क्या बस वही बलात्कार है जिसकी शिकायत किसी पुलिस थाने में की जाए , जिसका मुकदमा किसी न्यायालय में चले या जिसको मीडिया का कवरेज मिले क्या इसका बलात्कार- बलात्कार नहीं क्या इस का मान भंग नहीं हुआ क्या इसकी मर्यादा लज्जित न है भले ही लोग इसे मानसिक रोगी कहते हो भले ही इसका कोई F.I.R न हो, भले ही उसने किसी लालच बस दो रोटी के लिए किसी को ऐसे करने दिया हो परंतु कलंक समाज पर यह नहीं हम जैसे शिक्षित वर्ग जो नारीवाद का प्रोपेगंडा करते हैं ।

रेलवे स्टेशन के सामने उसी चाय की दुकान के पास कई सरकारी अधिकारी भी थे कभी किसी की नजर न गई ?
तीन बार ?
कुछ प्रश्न शब्द के साथ कुछ शब्द हीन अपना वजूद तलाशते हैं ...

सूरज सिंह राजपूत
08 अगस्त 2019

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