लडकी जो थी !

लडकी जो थी !

नवंबर न तो तेरी विदाई अच्छी रही न ही दिसंबर का आना मुझे अच्छा लगा किन्तु सारा दोष बस तुम्हें क्यों दूं , अब तो हर दिन हर महीने एक जैसा हो गया है , मसल दी जाती है कलियां, हर दिन रोते हैं बागवान फर्क इतना है कि बस चेहरे और किरदार बदल जाते हैं ।


लडकी जो थी !

माँ,
तुझे तो पता था ,
कि ये दुनिया दरिन्दो की है ।
फिर क्योँ लाई मुझे ?
क्योँ , जन्म दिया मुझे ?
मुझे पता भी न था
की ईज्जत क्या होती है ।
तब तक लुटली मेरी आबरु, दरिन्दो ने !

माँ,
मै तो गिन भी न पायी थी !
अपने उम्र की साल 3 थे या 4
गिन कर भी क्या करती
लडकी जो थी !
ना किसी ने बेटी माना,
न बहन !
बस हवस के परवान चड़ गयी !

माँ,
मै दर्द कैसे कहूँ अपनी
कैसे मिलाऊ नजरे तुमसे
अब तो मै मौत के हवाले हूँ ।
मैं खुश हूँ, मौत को पाकर
यहाँ सूरक्षा है, यहाँ दरिन्देँ नहीँ
न हीं लोग ताना करते है ,
पर माँ तेरी याद आती है !

माँ,
मैं क्या करूँ ?
तु भी तो रो रही होगी ,
माँ मै-भी रो रही हूँ !
शायद और कुछ ना कह पाऊँ !
चल बता पापा कैसे है ,
क्या मेरे हक का ताना,
लोग उन्हे कसते है !

माँ
कुछ ना छिपा सब बता
कितने दिनों से,
पापा बाहर नहीं गये ?
मुझे पता है ,
वो भी रो रहे होगें
उनसे कहना,
मेरी कोई खता न थी !

माँ,
मै तो जगने से पहले हीं,
सो चुकि थी !
वो आये थे मेरे पास
सो जाने के बाद,
महसूस हुआ मुझे
वो चुप से थे
रो रहे थे !

मेरे पापा,
मै कहना भूल गई !
आप बहुत प्यारे हो,
पर रोते हुये अछे नही लगते !
माँ,
भैया को कहना,
वो ना रोये, सब तो है !
क्या हुआ मै ना रही !

भैया ,
तोर देना वो राखी का कंगन
जो आप ने उपहार मे दिया था ,
क्या करोगे उसका ?
मै जो ना रही !
कंगन, बेवजह
आपको रुलाती रहेगी !
मेरी याद दिलाती रहेगी !

माँ,
मै यहाँ सुरक्षित हूँ
फिर भी,
भैया कि याद आती है !
मुन्नी की याद आती है !
संभालना उसको दरिन्दो से,
या फिर भेज दे मेरे पास !
माँ बहुत दर्द होता है !

माँ,
एक बात कहूँ ?
मौत उतनी बुरी ना थी,
जितनी मौत के पहले का मंजर !
सब तमाशबीन थे,
देखते रहे !
बस मौत ही आई थी मुझे बचाने,
न जाने क्या खता थी मेरी ?

माँ,
सबकी याद आती है ,
क्या ? सब मुझे भूल गये !
और वो चाचा,
वो सब जो कैन्डल मार्च किये थे
अब भी आते है ??
क्या आज मै,
बस समाचार बन गई ?

माँ
मेरा दर्द तो,
विचार योग्य था !
समाचार ?
दुनियाँ ऐसी क्यों ? है
अब मैं तो दोबारा न जगूंगी
लेकिन,
समाज को जगाती रहना ।

माँ,
तू बस यह ना सोच,
कि बस मैं मरी हूं !
मुझसे पहले मरी थी
संवेदना,
इंसानियत, मानवता,
हो सके तो,
समाज को जगाती रहना !

सूरज सिंह राजपूत
24 दिसंबर 2014

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